सही और गलत
#प्रतियोगिता हेतु
दिनाॅ॑क - 20/11/21
सही और गलत
"क्या फायदा है पढ़के! इतनी मेहनत करके! ज्यादा नंबर तो उस चोट्टे संजीव के आने है... नकल करके।" आशीष ने झुंझलाते हुए अपने छोटे भाई नमित से कहा।
"लेकिन भैया! मम्मी तो....!"
"अरे छोड़ मम्मी की बात! ये दूसरा साल है... स्कूल बंद हैं। ऑनलाइन क्लासेस और ऑनलाइन इक्जैम्स का समय चल रहा है। सभी तो चीटिंग करके फुल नंबर ला रहे हैं। वो तो शुक्र है कि मम्मी दूसरों के ज्यादा नंबरों को देखकर और सुनकर भी कुछ नहीं कहती हमें। पर कभी कह दिया तो! इसलिए मैंने सोच लिया है कि मैं भी दूसरों की तरह ही परीक्षाऍ॑ दूंगा। कम से कम नंबर तो और बेहतर आऍ॑गे।" आशीष ने लापरवाही से कहा।
"पर भैया! मम्मी कहती हैं कि चीटिंग करना ग़लत बात होती है। स्कूल में टीचर्स ने भी तो हमें...!"
"बस! बस! मम्मी का चमचा! तुझे पढ़ना है ना! तो जाकर पढ़! एक बार स्कूल खुल गए तो जिंदगी फिर से नरक हो जानी है। तो जब तक साॅ॑स लेने का समय मिला है, जी लेते हैं जी भरकर।" आशीष, नमित को देखकर मुस्कुराते हुए बोला।
"भैया! ये ग़लत बात है।"
"मुझे मत सिखा समझा! बड़ा भाई हूॅ॑ मैं तेरा... और हाॅ॑ मम्मी से जाकर चुगली ना लगा दियो। तुझे पढ़ना है पढ़! मुझे बख्श दे।" नमित के आगे हाथ जोड़कर आशीष ने कहा।
नमित ने उसे देखकर बुरा सा मुॅ॑ह बनाया और पढ़ने चला गया। एक हफ्ते के बाद से उन दोनों की टर्म 2 की परीक्षाऍ॑ शुरू होने वाली थीं। आशीष और नमित क्रमशः- कक्षा 6 और कक्षा 4 के विद्यार्थी थे। पिछले साल से महामारी की वजह से सभी बच्चों के स्कूल बंद चल रहे थे। बच्चों को शिक्षित करने का जिम्मा ऑनलाइन क्लासेस ने उठा लिया था। शुरु शुरु में तो आशीष को यह सब बहुत अच्छा लगा। वह मन लगाकर पढ़ाई करता था। पिछले साल की सारी परीक्षाऍ॑ आशीष और नमित ने पूरी मेहनत से तैयारी करके दीं। हमेशा की तरह उन दोनों के मार्क्स भी अच्छे आए थे। पर आशीष को यह जानकर धक्का लगा कि उनके मोहल्ले में रहने वाला गौरव उससे कहीं ज्यादा मार्क्स ले आया था। सभी जानते थे कि गौरव पढ़ने में बिल्कुल भी अच्छा नहीं था, इसलिए उसके ज्यादा मार्क्स ने आशीष को हैरत में डाल दिया था। उसने जब उससे पूछा, तो उसने बताया कि उसने तो आराम से पुस्तकें खोलकर सारी परिक्षाऍ॑ दी हैं।
"यानि कि तूने चीटिंग की। ये तो बुरी बात है।" आशीष ने गौरव से कहा।
"काहे का अच्छा... काहे का बुरा! जिस चीज में अपना फायदा हो, मैं उसे नहीं छोड़ता... और तुझे क्या लगता है। ये सब घर में बैठकर जो परिक्षाऍ॑ लिख रहे हैं, वो क्या पूरी ईमानदारी से लिख रहे हैं। अब तू ही भोला है, तो कोई क्या कर सकता है!" गौरव ने धिक्कार भरे स्वर में कहा।
उसकी बात सुनकर आशीष भौंचक्का रह गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सब इस तरह चीटिंग करके इतने मार्क्स ले आ रहे हैं। उसके मन में ख्याल आया कि इस तरह से तो सभी टीचर्स की नज़रों में चढ़ जाऍ॑गे और एक वही पीछे रह जाएगा। उसे इस बात की चिंता होने लगी। पर वह हमेशा से ही एक मेहनती लड़का था, इसलिए उसने मेहनत करना नहीं छोड़ा। अगली कक्षा में टर्म 1 की परीक्षा में फिर उसके गौरव से कम नंबर आए, तो इस बार वो बिफर उठा। अब तो उसने भी तय कर लिया कि अब वो भी परेशान ना होकर दूसरों की तरह ही परिक्षाऍ॑ देगा और दूसरों की तरह अधिक नंबर लाएगा। इसी विषय में वह अपने छोटे भाई से कह रहा था, पर उसे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उसकी माॅ॑ ने उन दोनों के बीच की सारी बातें सुन ली है।
आशीष की माॅ॑ नेहा उसकी बातें सुनकर परेशान हो गई। वह नहीं चाहती थी कि आशीष इस तरह गलत रास्ते पर चलकर आगे बढ़े। एक बार के लिए उन्हें आशीष पर बहुत गुस्सा आया और उनका मन किया कि आशीष की जोरदार पिटाई करके उसके अकल ठिकाने लगा दे, मगर तभी उनकी चेतना ने उन्हें टोका। कुछ विचार करके उन्होंने फिलहाल आशीष से कुछ भी ना कहने का फैसला किया। आशीष ने अपनी योजना से आश्वस्त होकर बिल्कुल भी पढ़ाई नहीं की थी। वास्तव में टर्म 1 की परीक्षा के बाद उसने पुस्तकों से किनारा कर लिया था। क्लासेस अटेंड करने के अलावा उसने और कुछ काम नहीं किया था। ना ही उसने परीक्षा की तैयारी की और ना ही कोई नोट्स तैयार किए।
परीक्षा से एक दिन पहले उसकी माॅ॑ नेहा उसके कमरे में गई। वो आराम से फोन में गेम खेल रहा था। नेहा को देखते ही वो थोड़ा हड़बड़ा गया।
"और... क्या हो रहा है? तैयारी हो गई तुम्हारी कल की परीक्षा की!" नेहा ने आशीष से पूछा।
नेहा का सवाल सुनकर आशीष थोड़ा सा झेंप गया। अपनी माॅ॑ से झूठ बोलना उसे बुरा लग रहा था। उसने बस सहमति में अपना सिर हिला दिया। उसकी इस हरकत से एक बार फिर नेहा की मुट्ठियाॅ॑ और जबड़े भिंच गए, मगर तुरंत ही उसने खुद को काबू में किया। नेहा को इस तरह देखकर आशीष घबरा गया।
"मुझे सब पता है कि तुमने कोई तैयारी नहीं की है, बल्कि तुम चीटिंग करके फुल मार्क्स लाना चाहते हो।"
नेहा के मुॅ॑ह से यह सुनकर आशीष का कलेजा जैसे मुॅ॑ह को आ गया। वह किसी बुत की तरह अपनी जगह पर जमा रह गया। ख़ौफ उसके चेहरे पर झलकने लगा था। वह अपनी माॅ॑ के रौद्र रूप का सामना करने के लिए खुद को तैयार करने लगा। परंतु आश्चर्यजनक रूप से नेहा ने ऐसा कुछ नहीं किया। वह धीरे से चलकर उसके पास आई और उसके पास बैठ गई।
"मुझे समझ नहीं आ रहा है कि तुम्हारे मन में यह ख्याल आया भी कैसे? पर चलो, तैयारी तो तुमने की नहीं है। अब यही करना होगा वरना तुम पास भी कैसे होगे?"
नेहा के मुॅ॑ह से यह सब सुनकर आशीष ऑ॑ख फाड़ कर उसकी ओर देखने लगा। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था, कि यह सब उसकी माॅ॑ कह रही थी। उसका दिल बल्लियों उछलने लगा।
"पर मेरी एक शर्त है।"
नेहा के अगले वाक्य में उसकी तंद्रा भंग की।
"क्या?"
"कल तुम्हारे और नमित दोनों के एग्जाम हैं। तुम एक शर्त पर चीटिंग कर सकते हो, यदि तुम प्रश्नों के उत्तर लिखने के लिए उतना ही समय लो.. जितनी देर में नमित अपने उत्तर लिख सके। जैसे ही नमित अपने उत्तर लिख लेगा तुम्हारा भी लिखने का वक्त खत्म हो जाएगा। मेरी यह शर्त मंजूर है तब कहो।" नेहा ने आशीष की ऑ॑खों में झांक कर देखते हुए कहा।
कहाॅ॑ आशीष अपनी माॅ॑ की डांट का इंतजार कर रहा था और कहाॅ॑ अब उसकी माॅ॑ खुद उसे चीटिंग करने के लिए कह रही थी। उसने तुरंत सहमति में अपना सिर हिला दिया। अगले दिन नियत समय पर दोनों भाइयों ने अपना पेपर लिखना शुरू किया। नमित ने तो शुरू से ही सारी तैयारी कर रखी थी इसलिए उसने तुरंत ही सारे उत्तर लिख लिए। किंतु पुस्तकों को हाथ भी ना लगाने के कारण आशीष को प्रश्नों के उत्तर ढूंढने में परेशानी हो रही थी, जिसके कारण नियत समय पर वह आधे प्रश्नों के उत्तर ही लिख सका। मगर उसने वादा किया था इसलिए नमित के उत्तर लिखते ही उसे भी पेपर लिखना बंद करना पड़ा। बड़ी मुश्किल से वह पासिंग मार्क्स लाने के लायक ही जवाब लिख पाया था।
अपनी हालत देखकर आशीष रोआंसा हो गया। वो चाहकर भी सारे उत्तर नहीं लिख पाया था। उसकी हालत देखकर नेहा मुस्कुराई और कहा,
"यदि तुमने पहले की तरह मेहनत करके तैयारी की होती तो शायद तुमने अभी तक पूरे जवाब लिख लिए होते। तुम हमेशा ही लिख लेते थे। पर जो गलत करता है उसके साथ गलत ही होता है। छोटे हमेशा अपने बड़ों से सीखते हैं। तुमने एक बार भी नहीं सोचा कि तुम अपने छोटे भाई के सामने कैसी मिसाल रख रहे हो! तुमसे सीखकर वो भी गलत रास्ते पर चल सकता है। ये तो गलत है ना!"
नेहा की बात सुनकर आशीष ने शर्मिंदगी से अपना सिर झुका लिया।
"मम्मा! मेरे सारे दोस्त इसी तरह से मुझसे अधिक नंबर ला रहे थे। वो मेहनत भी नहीं कर रहे थे। मुझे लगा कि मेरे कम नंबर की वजह से कहीं आप नाराज़ ना हो जाऍ॑, बस... इसीलिए..!!" आशीष ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
"मगर तुम्हारे कम नंबर्स से मुझे कभी तकलीफ नहीं हुई, बल्कि तुम्हारी इस हरकत से हुई है। तुम कम नंबर लाते थे,पर अपनी मेहनत से लाते थे और एक बात याद रखना मेहनत कभी जाया नहीं जाती है। अगर तुम सचमुच मेरी भावनाओं की परवाह करते हो, तो ऐसे गलत काम फिर मत करना। एक बार गलत रास्ते से सफलता मिल जाए तो इंसान फिर उसका आदी हो जाता है। पर ये रास्ता हमें ऊंचाई नहीं खाई की गहराइयों में ले जाता है। ये बात शायद अभी तुम्हारी समझ में ना आए, पर कभी ना कभी जरूर आएगी।" नेहा ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा।
अपनी माॅ॑ की बात सुनकर आशीष की ऑ॑खों में आंसू आ गए। उसने अपनी माॅ॑ का हाथ थामकर वादा किया कि वह फिर से पहले की तरह मेहनत करेगा और अच्छे मार्क्स लाएगा। उसकी बात सुनकर नेहा ने आगे बढ़कर आशीष का माथा चूम लिया। अब आशीष एक बार फिर पहले की तरह तैयारियों में जु गया। उसे थोड़ी परेशानी हुई, पर उसने अपना वादा निभाया। हालांकि उसके नंबर कम आए पर वह उन्हीं से खुश था।
अब आशीष फिर से पहले की तरह मेहनत करने लगा। इसके लिए गौरव हमेशा उसका मजाक उड़ाता रहता था, मगर इससे अशीष को कोई फर्क नहीं पड़ा। धीरे-धीरे महामारी का प्रकोप कम होने लगा, जिससे साल की आखिरी वार्षिक परिक्षाओं के लिए स्कूल में आकर परिक्षाऍ॑ देने का नोटिस सभी बच्चों को मिला। इससे आशीष और उसकी तरह मेहनत करने वाले बच्चों को तो कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि उन्होंने तो शुरू से ही सारी तैयारियां कर ली थीं, पर गौरव और गौरव जैसे अन्य बच्चों को अब नानी याद आने लगी थीं। यकीनन अब सबके सामने उनके गलत काम आने वाले थे।
परिक्षाऍ॑ खत्म हुईं और फिर नतीजे भी आए। आशीष को अच्छे नंबरों के रूप में उसकी मेहनत का परिणाम मिला। वहीं दूसरी ओर गौरव बड़ी मुश्किल से पास हो सका। आज आशीष ओ उसकी माॅ॑ की कही बात समझ में आ गई कि मेहनत कभी जाया नहीं जाती। एक ना एक दिन वो अपना रंग जरूर छोड़ती है।
आज वह उन्हीं मेहनत के रंगों से अपनी माॅ॑ को रंगने जा रहा था और उनका धन्यवाद भी करने, क्योंकि गलत समय पर उन्होंने मारने-पीटने या भला-बुरा कहने की बजाय समझदारी से उसे सही और गलत का फर्क समझा दिया था।
समाप्त
Shaba
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वरुण एकलव्य
01-Dec-2021 12:07 PM
पढ़ाई और परीक्षा में मार्क्स लाने के अभिभावकों के दबाव और डर से बच्चे अक्सर भटक जाते हैं। इस समय पर बहुत कम ही लोग होते हैं जो उदाहरण के साथ समझाने का प्रयास करते हैं। बहुत ही सुंदर सीख देती कहानी।
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Shaba
01-Dec-2021 12:39 PM
आभार आपका।
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Swati chourasia
22-Nov-2021 08:57 PM
Very beautiful 👌
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Shaba
01-Dec-2021 12:39 PM
धन्यवाद!
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Seema Priyadarshini sahay
21-Nov-2021 12:24 AM
बहुत बढ़िया कहानी
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Shaba
01-Dec-2021 12:39 PM
धन्यवाद!
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